पर्यूषण पर्व : श्वेताम्बर जैन समाज का आत्मशुद्धि महापर्व 20 अगस्त से शुरू
भारत की आध्यात्मिक परंपरा में जैन धर्म का योगदान अद्वितीय माना जाता है। सत्य, अहिंसा, तप और आत्मसंयम की शिक्षाएँ आज भी पूरे विश्व के लिए प्रेरणास्रोत हैं। जैन परंपरा में कई धार्मिक उत्सव मनाए जाते हैं, परंतु उनमें सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है पर्यूषण। विशेषकर श्वेताम्बर जैन समाज में यह पर्व आठ दिनों तक बड़े उत्साह और श्रद्धा से मनाया जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक और मानवीय दृष्टि से भी अत्यंत प्रासंगिक है।
पर्यूषण का अर्थ और महत्व
‘पर्यूषण’ शब्द का अर्थ है—‘अपने भीतर ठहरना’, अर्थात् आत्मा की ओर लौटना। सामान्य जीवन में मनुष्य भौतिक सुख-सुविधाओं, परिवार और सांसारिक कार्यों में इतना उलझ जाता है कि आत्मा के वास्तविक स्वरूप को भूल जाता है। पर्यूषण पर्व हमें याद दिलाता है कि जीवन का मूल उद्देश्य आत्मिक उन्नति है। यह पर्व आत्मचिंतन, आत्मशुद्धि और क्षमा की साधना का अवसर प्रदान करता है। श्वेताम्बर परंपरा के अनुसार, यह पर्व चातुर्मास के दौरान मनाया जाता है, जब साधु-साध्वियाँ एक स्थान पर ठहरकर प्रवचन और आगम पाठ कराते हैं। इस दौरान समाजजन अधिक से अधिक समय धर्म-चिंतन, स्वाध्याय और उपवास में व्यतीत करते हैं।
पर्व की अवधि और अनुष्ठान
श्वेताम्बर समाज में पर्यूषण पर्व आठ दिनों तक चलता है। इन दिनों में धार्मिक अनुष्ठानों और साधना की विशेष महत्ता होती है। हर दिन की अलग विशेषता होती है, और श्रद्धालु विभिन्न नियमों का पालन करते हैं। प्रवचन और आगम पाठ : पर्यूषण पर्व के दौरान जैन आगम ग्रंथों का वाचन और अध्ययन किया जाता है। साधु-साध्वियों के प्रवचनों में जीवन मूल्यों, अहिंसा, संयम और सत्य जैसे सिद्धांतों पर प्रकाश डाला जाता है। उपवास और संयम : कई श्रद्धालु आठों दिन उपवास करते हैं, जबकि कुछ लोग आंशिक उपवास या एकासन का पालन करते हैं। उपवास का उद्देश्य केवल शरीर को कष्ट देना नहीं, बल्कि आत्मा को शुद्ध करना और इंद्रियों पर नियंत्रण पाना है।
सामायिक और प्रतिक्रमण : पर्यूषण के दिनों में सामायिक (ध्यान-स्थिरता) और प्रतिक्रमण (अपने दोषों का प्रायश्चित) विशेष रूप से किए जाते हैं। प्रतिक्रमण से व्यक्ति अपने द्वारा किए गए पापों और गलतियों को स्वीकार कर आत्मशुद्धि की ओर बढ़ता है। दान और सेवा : इस अवधि में दान-पुण्य का कार्य भी महत्वपूर्ण माना जाता है। लोग अन्न, वस्त्र और दवाइयों का दान करते हैं और सेवा कार्यों में भाग लेते हैं।
सम्वत्सरी – क्षमा का महान दिवस
पर्यूषण पर्व का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है सम्वत्सरी। यह आठवें दिन मनाया जाता है और इसे क्षमा पर्व कहा जाता है। इस दिन प्रत्येक जैन अनुयायी आत्मनिरीक्षण करता है और दूसरों से क्षमा याचना करता है। सम्वत्सरी के दिन जैन लोग आपस में मिलकर कहते हैं—“मिच्छामि दुक्कडम्”, जिसका अर्थ है—“यदि मुझसे जाने-अनजाने में कोई गलती हुई हो तो मुझे क्षमा करें।” यह अनोखी परंपरा समाज में भाईचारे, सौहार्द और शांति का वातावरण निर्मित करती है। क्षमा की यह परंपरा जैन धर्म की सबसे बड़ी देन कही जा सकती है। आज जब समाज में तनाव, प्रतिस्पर्धा और संघर्ष बढ़ रहे हैं, तब ‘मिच्छामि दुक्कडम्’ का संदेश और भी अधिक प्रासंगिक हो जाता है।
श्वेताम्बर परंपरा की विशेषताएँ
श्वेताम्बर संप्रदाय पर्यूषण पर्व को अत्यंत अनुशासन और भक्ति के साथ मनाता है। इस दौरान मंदिरों में सजावट, धार्मिक सभाएँ और प्रवचन होते हैं। साधु-साध्वियाँ भक्तों को आत्मसंयम और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। श्वेताम्बर परंपरा में कल्पसूत्र का पाठ विशेष रूप से किया जाता है। इसमें भगवान महावीर स्वामी के जीवन और शिक्षाओं का विस्तृत वर्णन मिलता है। श्रावक-श्राविकाएँ इस अवसर पर अधिक से अधिक समय मंदिर में बिताते हैं और धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते हैं।
छोटे-बड़े सभी लोग सामूहिक प्रतिक्रमण में शामिल होकर अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं।
सामाजिक और मानवीय दृष्टि से महत्व
पर्यूषण केवल धार्मिक पर्व ही नहीं है, बल्कि यह समाज को नैतिक मूल्यों की ओर प्रेरित करता है। आज की आधुनिक जीवनशैली में जब लोग आपसी रिश्तों में कटुता और प्रतिस्पर्धा का शिकार हो रहे हैं, तब पर्यूषण पर्व क्षमा, करुणा और सहिष्णुता का संदेश देता है। समाजशास्त्रियों का मानना है कि यदि हम प्रतिवर्ष क्षमा पर्व के अवसर पर सच्चे मन से दूसरों से क्षमा मांगें और क्षमा करें, तो सामाजिक तनाव और विवादों में उल्लेखनीय कमी आ सकती है। यह पर्व केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव समाज के लिए नैतिक शिक्षा है।
आधुनिक संदर्भ में पर्यूषण
आज की तेज़ रफ्तार दुनिया में मनुष्य बाहरी उपलब्धियों पर अधिक ध्यान देता है और भीतर की शांति से दूर हो जाता है। पर्यूषण हमें रुककर आत्मनिरीक्षण करने का अवसर देता है। आठ दिन तक तप, संयम और आत्मशुद्धि का अभ्यास व्यक्ति को भीतर से मजबूत बनाता है। साथ ही, पर्यूषण पर्व पर्यावरण और जीवों के प्रति संवेदनशील बनने का भी संदेश देता है। जैन धर्म का मूल सिद्धांत अहिंसा है, और पर्यूषण इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। जीवों के प्रति करुणा, दया और प्रेम का भाव आज की पर्यावरणीय समस्याओं को सुलझाने में भी मददगार हो सकता है।
निष्कर्ष
श्वेताम्बर जैन समाज का पर्यूषण पर्व आत्मशुद्धि, संयम और क्षमा का अद्भुत अवसर है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि मनुष्य जीवन का वास्तविक उद्देश्य केवल भौतिक उपलब्धियाँ नहीं, बल्कि आत्मिक उन्नति और मानवीय गुणों का विकास है।सम्वत्सरी के दिन जब हर जैन अनुयायी ‘मिच्छामि दुक्कडम्’ कहकर दूसरों से क्षमा याचना करता है, तब यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन दर्शन बन जाता है। यही दर्शन आज के समाज को सबसे अधिक आवश्यकता है। इस प्रकार, पर्यूषण पर्व केवल जैन धर्म की पहचान नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए शांति, क्षमा और आत्मसंयम का प्रेरणास्रोत है।
समाज रत्न श्री प्रेम कुमार जैन
ऋषभ जैन ( चेयरमैन ) जी. एस. पब्लिक स्कूल, धौला